| मथुरा / ब्रज | ।
हरवंश पुराण मे भी श्रीकृष्ण की जो कुंडली बनी मिलती है तथा सूरदास जी ने भी जो पत्री पेश की है-वह दोनो ही भगवान श्री की चंद्र कुंडली है।
श्रीकृष्ण की चंद्र कुंडली वृष राशि मे चंद्र के होने से वृष लग्न की बनती है।जिसमे लग्न मे रोहिणी नक्षत्र के चंद्र स्थित हैं।
आइए हम नये दृष्टिकोण से भगवान श्रीकृष्ण के जन्म समय व पत्री का विश्लेषण करते है।
पहली बात उनके जन्म के वक्त रात अंधेरी व मूसलाधार बारिश हो रही थी,वे परिवार समेत कारागार मे थे और भादों की उसी अंधेरी रात मे कितने बजे (पता नही?),अनुमानतः आधी रात के आसपास उनका जन्म होता है।पानी कारागार के मुख्य द्वार तक चढा हुआ था।
इसलिए उनके चंद्र की महादशा चल रही थी जो कि चंद्र राहु के साथ था और राहु के ग्रहण से ही माता को कष्ट था क्योकि राहु वृष का था और केतु वृश्चिक का था।राहु ने जन्म ही रहस्यमय किया व स्थान प्राण रक्षा हेतु स्थान परिवर्तन कराया तथा नाग यानी राहु की सहायता से वर्षा बाढ से निपटकर बालक कृष्ण रातों रात मथुरा से ब्रज पहुंच गये।और यह रहस्य कोई जान न सका-अवतारी कांड हो गया।
आइए देखें यदि वृष लग्न मे जन्म होता तो रात के साढे ग्यारह बजे से लेकर सवा एक बजे का जन्म होता,दूसरे चंद्र की दशा मे राहु का अंतर चल रहा था-यह तो सब सुधी जन मानेंगे क्योंकि जन्म की समस्त परिस्थितियां खुद इसकी गवाही दे रही हैं।लेकिन वृष लग्न यदि होती तो मां को कारागार तथा तत्काल स्थान परिवर्तन के योग वृष लग्न नही व्याख्या कर पा रही है-स्थान परिवर्तन चौथे भाव से संबंधित है ,कारागार द्वितीय ,छठे तथा बारहवें से ।इस तरह वृष लग्न होने मे चंद्र का संबंध चौथे व राहु का कारागार से नही बन पाता,क्योकि चौथे का स्वामी सूर्य होंगे तथा कारागार के स्वामी मंगल व बुध।जो कि गोचर दशा व अंतर्दशा किसी भी तरह से जन्म समय की परिस्थितिया व घटनाए व्याख्यायित नही हो सकतीं।
इसलिए जन्म रोहिणी नक्षत्र मे होने से वृष राशि तो भगवान की थी परंतु लग्न वृष नही थी।यह कृष्ण के बाद के जीवन की घटनाओ को देखकर भी स्पष्ट होता है कि उनके स्वभाव व व्यक्तित्व मे वृष लग्न के गुण नही थे,अपितु वृष राशि के गुण थे।वृष लग्न का जातक स्थिर स् भाव का बहुत हट्टटा कट्टा और अधिक भोगी व अधिक क्रोधी तथा भौतिकतावादी होता है।सीधा व मेहनती होता है।न कि लङाकू युद्ध प्रिय और राजनैतिक होता है।उसे स्थान परिवर्तन प्रिय नही होता,कम यात्रा पसंद भी होता है,बल्कि आराम से सुख पुर्वक जीवन व्यतीत करता है।जीवन मे अध्यात्मिकता से दूर रहता है या बहुत अधिक अध्यात्म भाव जन्मे भी तो भक्ति मार्गी होता है।न कि योगी व निष्काम कर्मयोगी।
तो बहरहाल लग्न को लेकर मै पिछले डेढ दशक से बहुत खोज व विश्लेषण करता रहा हूँ ।भगवान की लग्न निश्चित ही वृष लग्न का उनका स्वभाव खारिज करती है।
तो सवाल उठता है कि यदि प्रचलित वृष लग्न का खंडन मै कर रहा हूं तो फिर श्रीकृष्ण की वास्तविक जन्मलग्न थी कौन सी? किस लग्न मे योगेश्वर का अवतार हुआ था?
मेरा अपने ढाई दशक की ज्योतिष विधा के सानिध्य के अनुभव ने साफ तौर पर सिद्ध किया है कि भगवान कृष्ण वास्तव मे भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण मे रात्रि 11:00 -11:30 के मध्य अवतरित हुए थे।उस वक्त के हिसाब वह आधी रात के करीब करीब का वक्त ही था-और उनकी जन्म लग्न वही बनती है जो कालपुरूष यानी जगत की कुंडली मेष लग्न मे उनका जन्म हुआ था।चंद्र राहु द्वितीय भाव मे ,चतुर्थ मे कर्क मे वृहस्पति पंचम भाव मे सिंह के सूर्य,छठे कन्या मे बुध, सातवे भाव तुला राशि मे शुक्र व शनि।आठवे मे केतु ,दसवें भाव मे उच्च के मकर के मंगल।
यह लग्नपत्री साफ दर्शाती है कि भगवान कृष्ण के जन्मांग मे हंस,शश ,मालव्य और रूचक महापुरूष योग बने हुए थे।साथ मे चंद्र राहु का वृष राशि मे द्वितीय भाव मे रहस्यमय लावण्यमयी मायावी योग तथा वाणी मे चंद्र राहु के प्रभाव से अति चातुर्य योग तथा चतुर्थेश चंद्र के द्वितीय भाव मे उच्च के होने व राहु की रहस्यमय ताकत के प्रभाव से सांवले सलोने व विलक्षण वंशी बजाने वाले कान्हा का व्यक्तित्व निर्मित होता है।
आइए फिर से उनकी जन्म की परिस्थितियो व दशा के माध्यम से ज्योतिषीय विश्लेषण करते है-चंद्र मे राहु मे जन्म हुआ,माता का कारक व चतुर्थ का चंद्र उत्तम मां पर राहु द्वारा पीङित माता-द्वितीय यानी पारिवारिक कारागार मे बंदी माता से जन्म पर तुरंत माता से दूरी-स्थान परिवर्तन,परिवार से दूर ब्रज मे पहुंचना।परंतु उच्च के चंद्र का चौथे भाव का फल चौथे मे कर्क के उच्च के गुरू की स्थिति से यशोदा जैसी मा मिल जाती है-चौथे का पूरा फल विलक्षण हो जाता है।यानी जन्म देने वाली मा का सुख अल्प लेकिन दूसरी माता का अतीव प्यार व सुख पाने का योग मेष लग्न के चतुर्थेश चंद्र की स्थिति व दशा से प्रमाणित होता है।
द्वितीय भाव का चंद्र बताता है कि वे दूध दही गोरस(इन सबका स्वामी चंद्र होता है ,के घर मे रहे,और खूब प्रसन्न तथा मौजमस्ती किए।जबकि द्वितीय भाव का राहु चंद्र युति मे द्वितीय का राहु मारकता भी लिए हुए था-और राहु मतलब विष-पूतना की घटना,स्तनपान और जहर आदि सबकी व्याख्या द्वितीय मे बैठा वृष का चंदेर राहु कही अधिक प्रामाणिक तरीके से करता है ,बनिस्पत वृष लग्न मानकर लग्न मे उपस्थित वृष के चंद्र के पलादेश से।
इसलिए मेरा प्रतिपादन है कि मेष लग्न व वृष राशि मे कन्हैया का जन्म हुआ था।इसके अतिरिक्त उनके जीवन के अगले सात वर्षो मे आने वाली मंगल की दशा से भी उनके मेष लग्न के होने के प्रबल प्रमाण प्रस्तुत करूंगा । फिलहाल आज जय श्रीकृष्ण कहने का दिन है।हरि बोल! कान्हा की जय हो।
(शेष क्रमशः अगली पोस्ट मे) | ...